गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें आशा की नयी किरणेंरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...
ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
आपके अनुभव, संसारका इतिहास, समाजमें इर्द-गिर्द होनेवाली अनेक ऐसी घटनाएँ हैं, जिनसे आपका ज्ञान बढ़ सकता है। आपर्का प्रत्येक गलती आपको गुप्तरूपसे कुछ शिक्षा, कुछ उपदेश देती है, आपको आगे बढ़ाती है। इन अनुभवों,
ग्राह्य वस्तुओं एवं उपदेशोंमें आप अपनी ग्रहण-शक्तिकी योग्यताके अनुसार ही उन्हें ग्रहण कर सकते हैं। यदि आप अपनी ग्रहण-शक्तिको बढ़ावे; जो देखते, सुनते या अनुभव करते हैं, उसे ग्रहण करें, स्मृतिमें रखें, तो प्रगतिके पथपर आगे बढ़ सकते हैं। जो घटनाएँ या अनुभव आपको मिलें, उन्हें ठीक तरह समझें, शंकाओंका समाधान करें, सार-सार ग्रहण करें और व्यर्थको भूलें, भविष्यमें गलती न करें तो पर्याप्त उन्नति कर सकते हैं।
यह विश्वास रखिये कि परिस्थिति-निर्माणकी योग्यता आपमें भरी हुई है। हर व्यक्ति स्वयं अपने पुरुषार्थसे अपने संसारका निर्माणकर्ता है। आप उच्चतम ईश्वरीय शक्तियोंकी सामर्थ्य लेकर चल रहे हैं। कोई दुष्ट आपका मार्ग अवरुद्ध नहीं कर सकता, बाधाएँ ठहर नहीं सकतीं; क्योंकि आपके शरीर, मन, कर्मसे परमेश्वरकी दिव्य शक्तियाँ प्रवाहित हो रही हैं। ईश्वर आपके द्वारा अपने शुभ कार्य कर रहा है। ईश्वर आपके भीतरसे चमक रहा है। ईश्वरत्वको अपने द्वारा प्रकट कीजिये, ईश्वरमें रहिये-सहिये। ईश्वर होकर सात्त्विक पदार्थ खाइये और ईश्वर होकर ही पवित्र पदार्थ पीजिये। ईश्वरमें श्वास लीजिये और सत्का साक्षात् कीजिये। शेष शक्तियाँ स्वयं आपके पीछे-पीछे आती रहेंगी।
यस्याखिलामीवहभिः सुमंगलै-
र्वाचो विमिश्रा गुणकर्मजन्मभिः।
प्राणन्ति शुम्भन्ति पुनन्ति वै जगत्
यास्तद्विरक्ताः शवशोभना मताः।।
(श्रीमद्भा. १०। ३८। १२)
जब समस्त पापोंके नाशक प्रभुके परम मंगलमय गुण, कर्म और जन्मकी लीलाओंसे युक्त होकर वाणी उनका गान करती है, तब उस गानसे संसारमें जीवनकी स्फूर्ति होने लगती है, शोभाका संचार हो जाता है, सारी अपवित्रताएँ धुलकर पवित्रताका साम्राज्य छा जाता है; परंतु जिस वाणीसे उनके गुण, लीला और जन्मकी कथाएँ नहीं गायी जातीं वह मुर्देको ही शोभित करनेवाली हैं।
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- अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
- दुर्बलता एक पाप है
- आप और आपका संसार
- अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
- तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
- कथनी और करनी?
- शक्तिका हास क्यों होता है?
- उन्नतिमें बाधक कौन?
- अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
- इसका क्या कारण है?
- अभावोंको चुनौती दीजिये
- आपके अभाव और अधूरापन
- आपकी संचित शक्तियां
- शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
- महानताके बीज
- पुरुषार्थ कीजिये !
- आलस्य न करना ही अमृत पद है
- विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
- प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
- दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
- क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
- मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
- गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
- हमें क्या इष्ट है ?
- बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
- चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
- पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
- स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
- आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
- लक्ष्मीजी आती हैं
- लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
- इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
- लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
- लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
- समृद्धि के पथपर
- आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
- 'किंतु' और 'परंतु'
- हिचकिचाहट
- निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
- आपके वशकी बात
- जीवन-पराग
- मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
- सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
- जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
- सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
- आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
- जीवनकी कला
- जीवनमें रस लें
- बन्धनोंसे मुक्त समझें
- आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
- समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
- स्वभाव कैसे बदले?
- शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
- बहम, शंका, संदेह
- संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
- मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
- सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
- अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
- चलते रहो !
- व्यस्त रहा कीजिये
- छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
- कल्पित भय व्यर्थ हैं
- अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
- मानसिक संतुलन धारण कीजिये
- दुर्भावना तथा सद्धावना
- मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
- प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
- जीवन की भूलें
- अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
- ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
- शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
- ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
- शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
- अमूल्य वचन